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MOVIE REVIEW: बियॉन्ड द क्लाउड्स

Updated 20 April, 2018 10:34:41 AM

ईरान के फिल्ममेकर माजिद मजीदी ने अपनी फिल्मों के माध्यम से बहुत से लोगों का दिल जीता है। उन्होंने फ़ादर, चिल्ड्रन ऑफ हैवन, बारन, मुहम्मद जैसी कई सारी फिल्में विश्व भर के दर्शकों तक पहुंचाई है। इन्हें काफी सराहा भी गया है। भारत की पृष्ठभूमि पर मजीदी ने अब एक फिल्म बनाई है, जिसका नाम है "बियॉन्ड द क्ल

मुंबई: ईरान के फिल्ममेकर माजिद मजीदी ने अपनी फिल्मों के माध्यम से बहुत से लोगों का दिल जीता है। उन्होंने फ़ादर, चिल्ड्रन ऑफ हैवन, बारन, मुहम्मद जैसी कई सारी फिल्में विश्व भर के दर्शकों तक पहुंचाई है। इन्हें काफी सराहा भी गया है। भारत की पृष्ठभूमि पर मजीदी ने अब एक फिल्म बनाई है, जिसका नाम है "बियॉन्ड द क्लाउड्स"। इस फिल्म के माध्यम से जहां एक तरफ अभिनेता शाहिद कपूर के भाई ईशान खट्टर हिंदी फिल्मों में एंट्री कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ साउथ की अभिनेत्री मालविका मोहनन ने भी बॉलीवुड में इस फिल्म के साथ कदम रखा है। कई सारे फिल्म फेस्टिवल से होती हुई अब यह फिल्म भारत में 20 अप्रैल को रिलीज होगी। जानते हैं, कैसी बनी है यह फिल्म और इसे क्यों देखना चाहिए।

 

कहानी


इसमें झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले आमिर (ईशान खट्टर) और उसकी बहन तारा निशा (मालविका मोहनन) की कहानी दिखाई गई है। तारा धोबी घाट पर काम करती है और आमिर ज़िंदगी चलाने के लिए ड्रग्स बेचता है। आमिर ज़िंदगी को रॉकटे की तरह उड़ाना चाहता है। अचानक आमिर के अड्डे पर छापा पड़ता है। हालांकि, जैसे तैसे बहन तारा उसे बचा लेती है। दोनों की ज़िंदगी अभी सीधे रास्ते पर आने वाली होती ही है कि एक और हादसा होता है और तारा जेल चली जाती है। आमिर उसे बचाने की कोशिश करता है लेकिन क्या ये उसके लिए इतना आसान है? उसके पास ना पैसे हैं और ना ही कोई सहारा। क्या आमिर उसे जेल से निकाल पाता है। दोनों भाई बहन इस कठिन परिस्थिति में भी कैसे जीने का सहारा ढ़ूढ़ते हैं। यही कहानी है।


एक्टिंग


ईशान खट्टर की ये डेब्यू फिल्म है. इसमें उन्हें देखकर नहीं लगता कि एक्टिंग में वो बिल्कुल नए हैं। चाहे एक्सप्रेशन की बात हो या फिर डायलॉग डिलीवरी की, वो कहीं कमजोर नहीं दिखते। एक लड़का जिसके मां-बाप बचपन में ही छोड़कर चल गए। उसे बड़ा आदमी बनना है। ईशान के चेहरे पर कुछ बन जाने की चमक दिखती है। इसमें ईशान ने ये भी दिखा दिया है कि वो वर्सेटाइल एक्टर हैं. खुशी के पल को जताना हो या फिर इमोशनल सीन हो या फिर दोस्तों के साथ मस्ती के पल... हर जगह ईशान परफेक्ट हैं। ईशान फिल्म के एक सीन में पॉपुलर सॉन्ग मुकाबला में डांस करते भी दिखे हैं। तारा निशा के किरदार में मालविका मोहनन कमजोर पड़ी हैं या यूं कहें कि ईशान उनपर भारी पड़े हैं। फिल्म के एक सीन में भाई-बहन एक दसूरे से झगड़ते हैं। ये सीन पिछली फिल्म से जोड़ने के लिए दिखाया गया है जिससे पता चलता है कि दोनों एक दूसरे से अलग क्यों रहते हैं। आमिर यहां पूछता है कि वो तब क्यों नहीं कुछ बोली जब उसका हसबैंड आमिर को मारता था। यहां तारा का बहुत ही इमोशनल सीन है, लेकिन यहां ईशान तो इंप्रेस कर जाते हैं लेकिन मालविका पीछे रह जाती हैं। उनके डायलॉग से लेकर रोने-धोने तक सब बनावटी लगता है। इमोशनली उनके कैरेक्टर से खुद को जोड़ना बहुत मुश्किल लगता है। फिल्म में मालविका को जब जेल होती है वहां पर कॉस्ट्यूम और मेकअप से तो सही दिखती हैं लेकिन जैसे ही मुंह खोलती है सब ड्रामे में बदल जाता है। इसके अलावा तनिष्ठा चैटर्जी भी इस फिल्म में हैं। हालांकि, फिल्म में उनके सीन काफी कम हैं। इसमें बंगाली सिनेमा के जाने माने डायरेक्टर गौतम घोष निगेटिव किरदार में नजर हैं और अपनी भूमिका में फिट बैठे हैं।


डायरैक्शन

 

मजीदी समाज में हो रही घटनाओं को हूबहू पर्दे पर उतारने के लिए जाने जाते हैं। फिल्म में जो बात सबसे ज्यादा इंप्रेस करती है वो ये है कि मजीदी ने स्लम एरिया की कहानी दिखाई जरूर है लेकिन उसमें सिर्फ गरीबी और गंदगी ही नहीं बल्कि वहां की जिदंगी को भी बखूबी दिखाया है। खास बात ये है कि ढीली स्क्रिप्ट और लीड एक्ट्रेस की कमजोर एक्टिंग के बावजूद आखिर में ये फिल्म बेचैन करती है और दर्शकों को एक उम्मीद के साथ छोड़ जाती है। लेकिन फिल्म में कई सारे लूप होल्स हैं। इसमें आमिर अपनी बहन को अपनी जान, ज़िंदगी मानता है लेकिन फिल्म में ऐसी स्ट्रॉंग बॉन्डिंग कहीं नहीं दिखती जिससे ये लगे कि कहानी से इंसाफ हो रहा है। शुरुआती सीन्स में बस डायलॉग के जरिए ये बॉन्डिंग दिखाने की कोशिश की गई है। इंडियन सिनेमा में मजीदी की ये डेब्यू फिल्म है। मिडिल क्लास फैमिली में पले-बड़े मजीदी रियलिस्टिक सिनेमा बनाते हैं। हालांकि इस फिल्म में किरदारों से खुद को जोड़ पाना कुछ सीन्स में जरा मुश्किल सा लगता है। अब इसे सिर्फ डायरेक्शन और स्क्रिप्टिंग की कमी कहें या फिर एक्टर्स की परफॉर्मेंस की। कारण चाहे जो हो लेकिन फिल्म कई बार आपको निराश व कन्फ्यूज करती नजर आती है, वहीं फिल्म में इंग्लिश डायलॉग्स भी आपको अटपटे लगते हैं। यहां डायरेक्टर ने जेल में रह रहे छोटे बच्चे और महिला कैदियों की ज़िंदगी को भी दिखाने की कोशिश की है लेकिन यहां वो भी नाकाम रहे। तनिष्ठा चैटर्जी जैसी बेहतरीन एक्ट्रेस को उन्होंने कुछ ही मिनट दिए हैं। अगर उन्हें और मौका मिलता तो वो जेल के सीन जान फूंक डालती।

 

सिनेमैटोग्राफी

 

इस फिल्म के कुछ सीन्स बहुत ही शानदार फिल्माए गए हैं जोकि आमतौर पर फिल्मों में देखने को नहीं मिलते। मुंबई बेस्ड तो न जाने कितनी कहांनियां आपने बॉलीवुड फिल्मों में देखी होंगी लेकिन इस फिल्म जैसे सीन्स नहीं देखें होंगे। इस फिल्म के सिनेमैटोग्राफर अनिल मेहता हैं जो इससे पहले 'हम दिल दे चुके सनम', 'लगान', 'वीर-ज़ारा', 'रॉकस्टार' और 'हाईवे' जैसी फिल्मों के लिए तारीफें बटोर चुके हैं। फिल्म के डायरेक्शन की कमियां सिनेमैटोग्राफी पूरा करती हैं।

 


म्यूजिक 


इस फिल्म के लिए ओरिजिनल स्कोर और साउंड ट्रैक दोनों ही ए. आर. रहमान ने दिया है, लेकिन इसमें उनका म्यूजिक ऐसा नहीं है जो फिल्म देखने के बाद याद रह जाए. जिन्होंने ए. आर. रहमान से स्लमडॉग मिलेनियर जैसी उम्मीद थी उन्हें तो निराशा होगी।

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