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Exclusive Interview:  'लखनऊ सेंट्रल' की टीम से पंजाब केसरी की खास बातचीत

Updated 11 September, 2017 04:07:18 PM

सैंट्रल’ एक ऐसी वैल नेटेड कहानी है जिसकी स्क्रिप्ट सुनते-सुनते ही मैं खुद को करैक्टर के साथ जुड़ा महसूस करने लगा था। कहानी में इतना खो गया था कि स्क्रिप्ट खत्म होने

चंडीगढ़: सैंट्रल’ एक ऐसी वैल नेटेड कहानी है जिसकी स्क्रिप्ट सुनते-सुनते ही मैं खुद को करैक्टर के साथ जुड़ा महसूस करने लगा था। कहानी में इतना खो गया था कि स्क्रिप्ट खत्म होने के तत्काल बाद मैं रोल डिस्कस करने लगा, जबकि निखिल की टीम मुझसे यह सुनना चाह रही थी कि मैं फिल्म करूंगा या नहीं। पांच मिनट रोल डिस्कशन के बाद मुझे लगा कि ये लोग मुझे इस कदर क्यों देख रहे हैं। तब जाकर सब नॉर्मल हुए जब मैंने कहा कि भई, मैं फिल्म करूंगा।

 ‘भाग मिल्खा भाग’ में निभाए मिल्खा सिंह जी के रोल की ही माफिक यह रोल भी काफी शिद्दत से निभाया है। उम्मीद है लोगों को पसंद आएगा। ये कहना था अपनी आने वाली फिल्म ‘लखनऊ सैंट्रल’ के प्रोमोशन के लिए अपने साथी कलाकार गिप्पी ग्रेवाल और फिल्म के डायरैक्टर रंजीत तिवारी के साथ ‘पंजाब केसरी’ ऑफिस पहुंचे एक्टर फरहान अख्तर का। टीम से बातचीत हुई जिसके अंश इस प्रकार हैं-

 

 

कैसा लग रहा है चंडीगढ़ में आकर: फरहान अख्तर
फरहान अख्तर ने जवाब दिया कि बहुत अच्छा लग रहा है। भाग मिल्खा के बाद ऐसा लग रहा है कि मैं चंडीगढ़ से ही हूं। यहां से लोगों से बहुत प्यार मिलता है और अपनापन लगता है। 


अखबार के आर्टिकल ने प्रेरित किया फिल्म बनाने को: रंजीत तिवारी
फिल्म के डायरैक्टर रंजीत तिवारी ने बताया कि लखनऊ सैंट्रल की कहानी सच्चे किरदारों पर आधारित है। करीबन तीन साल पहले एक अंग्रेजी के अखबार में लखनऊ जेल के कैदियों द्वारा बनाए गए म्यूजिकल बैंड पर ध्यान गया। आर्टिकल पढ़ा तो फिल्म बनाने का ख्याल आया। निखिल से बात हुई तो उन्हें भी आइडिया पसंद आया। असल में आर्टीकल एक सालाना समारोह के बारे में था, ये फंक्शन उत्तरप्रदेश की 6 जेलों के बीच एक संगीत प्रतियोगिता के रूप में आयोजित किया गया था, जिसमें सभी जेलों के कैदियों के बैंडों ने भाग लिया था। इसी प्रतियोगिता में लखनऊ सैंट्रल जेल के 12 ऐसे कैदियों ने भी भाग लिया था, जो यहां उम्र कैद की सजा काट रहे थे। इन 12 कैदियों ने मिल कर एक म्यूजिकल बैंड बनाया और बॉलीवुड के टॉप गानों को परफॉर्म किया, धीरे-धीरे ये बैंड इतना मशहूर हुआ कि जेल में ही बैंड की बुकिंग के लिए काऊंटर बनाया गया और अब ये सभी कैदी शादियों और पार्टियों में जाकर परफॉर्म करते हैं और फिर वापस जेल में आ जाते हैं। कास्टिंग को लेकर भी काफी मेहनत की गई है। उम्मीद है कि लोगों को हमारा काम पसंद आएगा।


कहानी दिलचस्प थी, मेलबर्न का लाइव शो लेट हुआ: गिप्पी
फिल्म की कहानी की बात करते हुए पंजाबी सिंगर-एक्टर गिप्पी ग्रेवाल ने कहा कि जब उन्हें अप्रोच किया गया और बताया गया कि फरहान अख्तर लीड रोल के लिए हां कर चुके हैं तो मुझे लगा कि फिल्म अच्छी होगी। स्क्रिप्ट सुनाने के लिए जब प्रोडक्शन की तरफ से फोन आया तब मैं मैलबर्न में था और लाइव शो के लिए तैयार हो रहा था। सोचा 15-20 मिनट कहानी सुन लूंगा, लेकिन कहानी इतनी दिलचस्प थी कि करीबन अढाई घंटे लगातार फोन पर कहानी सुनता रहा। पीछे से मेरी टीम के लोग शो के लिए लेट होने की बात भी कहते रहे लेकिन कहानी की लय को बनाए रखने के लिए मैं उन्हें टालता रहा। कहानी पूरी होते ही तत्काल हां कर दी।
 
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कैसा लग रहा है
बिलकुल, अच्छा लगता है जब बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिलता है। मैं बेसीकली पंजाबी इंडस्ट्री की ही प्रोडक्ट हूं तो पंजाबी को छोडऩे का सवाल नहीं, बल्कि बॉलीवुड में जब भी अच्छा काम करने का मौका मिलेगा तो किया जाएगा। इस फिल्म के लिए भी ऐसा ही कहा जा सकता है। फिल्म की कहानी अच्छी लगी और काम करके भी बहुत मजा आया, सीखने-निखरने का मौका मिला।
आपकी तारीफ में आमिर खान ने भी ट्वीट किया
हां जी, आमिर खान बड़े कलाकार हैं और जब कोई आपके काम की तारीफ करे तो बहुत अच्छा लगता है फिर आमिर खान जैसा बड़ा स्टार तारीफ करे तो गर्व महसूस होता है। वैसे अक्सर आमिर साहब मेरी फिल्मों पर ट्वीट करते रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं पर जो उन्हें अच्छी लगीं।


‘लखनऊ सैंट्रल’ करने के पीछे कोई खास वजह
इस फिल्म की कहानी के बारे में यही कहूंगा कि ये ऐसी कहानी थी जिसकी नरेशन के साथ ही मैंने तय कर लिया था की ये फिल्म मुझे करनी है। सच कहूं तो मैं अक्सर स्क्रिप्ट सुनते हुए सो जाता हूं लेकिन जब इस फिल्म की नरेशन की गई तो मैं पूरी तरह से कहानी में इनवॉल्व हो गया। मुझे लगने लगा कि क्रिएट किए जा रहे हर सीन को मैं फील कर रहा हूं। कुछ सीन्स को सुनकर मैं भावुक भी हुआ। स्क्रिप्ट दमदार लगी, तभी इस फिल्म में किरदार को जीने का तय किया।
फिल्म की सफलता का पैमाना सिर्फ बॉक्स ऑफिस नहीं
‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म को मिली सफलता के बाद अब वैसी ही कामयाबी हासिल होने का कोई प्रैशर तो नहीं? इसके जवाब में फरहान ने कहा कि फिल्म ‘लखनऊ सैंट्रल’ हमारी टीम द्वारा कड़ी मेहतन के साथ तैयार की गई है और कहानी व मेहनत को देखकर कह सकता हूं कि लोगों को पसंद आएगी, रही बात बॉक्स ऑफिस की तो फिल्म की सफलता-असफलता तय करने के लिए बॉक्स ऑफिस एकमात्र पैमाना नहीं कहा जा सकता।

जिंदगी में फिल्मी किरदारों के असर पर बात करते हुए फरहान ने कहा की कैसे कभी-कभी किसी किरदार का असर निजी पर्सनैलिटी पर ऐसा होता है, जो मिटाए नहीं मिटता। फरहान के मुताबिक मेरे लिए सबसे ज्यादा मुश्किल कार्तिक कालिंग कार्तिक के बाद खुद को उस किरदार से बाहर लाना था। और सच कहूं तो ‘भाग मिल्खा भाग’ फिल्म में निभाए मिल्खा सिंह के किरदार से तो मैं आज भी बाहर नहीं निकला क्योंकि मैं निकलना ही नहीं चाहता। इस फिल्म की तैयारी के दौरान एक एथलीट की जिंदगी का जो रूटीन मैंने अपनाया था, वो मुझे हमेशा तरोताजा रहने में मदद करता है और मेरी जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है। शायद यही कारण है कि अब चंडीगढ़ तो अपना-सा लगता है, जब आता हूं, लगता है घर आया हूं। मिल्खा सिंह जी के किरदार के बाद चंडीगढ़ से एक ऐसा रिश्ता जुड़ा है जो अपने आप में सच में बहुत खास है।

कैडेट ऑफिसर्स से पता चली ‘लक्ष्य’ की कामयाबी
अपनी फिल्म ‘लक्ष्य’ से जुड़ा किस्सा बताते हुए फरहान अख्तर ने कहा कि उस फिल्म को भले ही बॉक्स ऑफिस पर बड़ी कामयाबी नहीं हासिल हुई थी और उसकी वजह से मैं काफी देर परेशान भी रहा था, लेकिन हाल ही में मुझे उस फिल्म की सफलता का पता चला। फरहान ने कहा कि कुछ समय पहले ही उनका देहरादून की तरफ जाने का प्रोग्राम था तो मैंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी में जाने का तय किया। वहां कैडेट ऑफिसर्स से बातचीत करते हुए ‘लक्ष्य’ फिल्म को बनाने का मकसद शेयर किया कि कारगिल युद्ध के बाद क्यों लक्ष्य बनाने की जरूरत पड़ी। इसी बीच जब जिज्ञासावश पूछा कि आपमें से कितने लोग लक्ष्य देखने के बाद आई.एम.ए. में आए हैं तो करीबन 70 फीसदी के हाथ खड़े थे। मुझे अहसास हुआ कि ‘लक्ष्य’ को कितनी बड़ी कामयाबी हासिल हुई थी।

फरहान ने कहा कि लोगों का मनोरंजन करना उन्हें बचपन से ही पसंद है। स्कूल के समय भी वो कई तरह की कहानियां बनाते और बच्चों को सुनाते रहते थे। एक किस्सा शेयर करते हुए फरहान ने कहा कि वो स्कूल बस में स्कूल जाते वक्त बच्चों को कहते थे कि मैं उड़कर स्कूल आता हूं। यह उड़ान एक विदेशी पतंग के जरिए पूरी की जाती है। यह आइडिया उस वक्त आई ‘याराना’ फिल्म से लिया था। बच्चे इसे सच मान गए और कइयों ने तो अपने मां-बाप से विदेशी पतंग मांगना भी शुरू कर दिया। एक बच्चे ने तो अपनी पतंग के साथ छत से उडऩे की भी तैयारी कर ली थी, जिसे उसके पापा ने पकड़ लिया। उसके बाद मेरी शिकायत स्कूल प्रिंसिपल तक पहुंची और पापा जावेद  तक भी। डांट भी पड़ी।
 

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