main page

Film Review: एक्शन, डायलॉग से भरपूर है 'नाम शबाना'

Updated 31 March, 2017 02:12:22 PM

हिंदी फिल्मों में ''नाम शबाना'' स्पिन ऑफ की पहली कोशिश है। स्पिन ऑफ में कहानी...

मुंबई: हिंदी फिल्मों में 'नाम शबाना' स्पिन ऑफ की पहली कोशिश है। स्पिन ऑफ में कहानी से किसी एक लोकप्रिय किरदार को उठाकर उसकी बैकस्टोरी को दिखाया जाता है। 2015 में आई बेबी औसत फिल्म थी, जिसे शोर मचा-मचा कर कमाऊ ब्रांड जैसा भ्रम रचा गया। अब उसकी एक किरदार शबाना (तापसी पन्नू) के जीवन को विस्तार से बड़े पर्दे पर उतारा गया है। कहानी के इस अंदाज को अंग्रेजी में स्पिन-ऑफ कहते हैं। यानी पहले से तैयार उत्पाद से एक अन्य नया उत्पाद बना लेना! ताकि पुराने ब्रांड को दुहा जाए। परंतु नाम शबाना शुरुआती मिनटों में बता देती है कि उसमें दुधारू जैसा कुछ नहीं है।

निर्माता-लेखक नीरज पांडे ने देशभक्ति का पासा फेंका है। तीनों सेनाओं तथा सरकारी रक्षा एजेंसियों से इतर गुप्त एजेंसी दिखाई है, जो देश के दुश्मनों को खत्म करती है। इसी में शबाना को भर्ती किया जाता है क्योंकि वह ताइक्वांडो जैसे खेल की धाकड़ खिलाड़ी है। उसने मां को पीटने वाले पिता के सिर पर ऐसी चोट मारी थी कि उनकी मौत हो गई थी। दो साल उसने सुधार गृह में गुजारे। अब वह सख्तजान है। अपने क्लासमेट का प्यार उसे नहीं छूता। प्रेमी फकत ड्राइवर बना रहता है और अंततः कुछ नालायक-बिगड़ैलों के हाथों मारा जाता है।

शबाना को उसका बदला लेना है। गुप्त एजेंसी उसकी मदद करती है और फिर शबाना को एक मिशन के लिए कुआलालंपुर भेजती है। जिसमें वह` अवैध हथियारों के तस्कर टोनी (पृथ्वीराज सुकुमारन) को मार गिराती है। 

डैनी, अनुपम खेर, मुरली शर्मा के छोटे छोटे कैमियो हैं लेकिन बेबी वाली बात नहीं है। फिल्म के गीत संगीत की बात करें तो वह फिल्म की सिर्फ लंबाई को बढ़ाते हैं। वह कहानी की मांग नहीं थे। वह फिल्म की गति में बाधा डालते हैं। फिल्म के संवाद कहानी के अनुरूप हैं। कुलमिलाकर 'नाम शबाना', 'बेबी' से तुलना करने पर ज़रूर कमजोर  दिखती है, लेकिन स्वतंत्र फिल्म के तौर पर देखें तो कमज़ोर कहानी के बावजूद यह एक एंगेजिंग फिल्म है।  
 

:

Naam ShabanaMOVIE REVIEWAkshay Kumarbollywood

loading...