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मूवी रिव्यू: 'मांझी - द माउंटेन मेन'

Updated 22 August, 2015 04:42:47 PM

'मांझी - द माउंटेन मेन' गया में गेहलोर जिले के रहने वाले दशरथ मांझी की बायोपिक है। उन्होंने 22 सालों की कड़ी मेहनत के बाद एक पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था।

मुंबई: 'मांझी - द माउंटेन मेन' गया में गेहलोर जिले के रहने वाले दशरथ मांझी की बायोपिक है। उन्होंने 22 सालों की कड़ी मेहनत के बाद एक पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया था। 2007 में उनका निधन हो गया था। 

दशरथ (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) पत्नी फगुनिया (राधिका आप्टे) से बेपनाह प्रेम करता है और उसके इर्द-गिर्द ही उसकी दुनिया घूमती है। लेकिन एक दिन पहाड़ से गिरकर फगुनिया घायल हो जाती है और चिकित्सा के अभाव में उसकी मृत्यु हो जाती है। यह हादसा दशरथ की जिंदगी बदल देता है। दशरथ को अहसास होता है कि यदि फगुनिया को गांव से थोड़ी दूर स्थित सरकारी अस्पताल समय पर पहुंचा दिया जाता, तो डॉक्टर उसकी जान बचा सकते थे। यहीं से शुरू होता है अकेले दम पर छैनी-हथौड़े से पहाड़ का सीना चीरने का सिलसिला।

केतन ने कहानी में रूतबे वालों का दलितों का शोषण, प्रेम अगन, व्यवस्था पर प्रहार और संघर्ष को बेहद शानदार ढंग से पेश किया है। डायलॉग "भगवान के भरोसे मत बैठिए, क्या पता भगवान आपके भरोसे बैठा हो" फिल्म की जान है और इसकी थीम को बखूबी बयां करता है।

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