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Movie Review: '102 नॉट आउट'

Updated 05 May, 2018 12:12:53 AM

डायरेक्टर उमेश शुक्ला की फिल्म ''102 नॉट आउट'' ह्यूमन इंट्रेस्ट और सोशल मैसेज देने वाली फिल्म है। फिल्म के जरिए उन्होंने बुजुर्गों की लाइफ का एक डिफरेंट फॉर्मेट में दिखाने की कोशिश की है। फिल्म हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ इमोशनल भी करती है।

मुंबईः डायरेक्टर उमेश शुक्ला की फिल्म '102 नॉट आउट' ह्यूमन इंट्रेस्ट और सोशल मैसेज देने वाली फिल्म है। फिल्म के जरिए उन्होंने बुजुर्गों की लाइफ का एक डिफरेंट फॉर्मेट में दिखाने की कोशिश की है। फिल्म हल्की फुल्की कॉमेडी के साथ इमोशनल भी करती है।

 

कहानी 

 

फिल्म में दत्तात्रेय वखारिया (अमिताभ बच्चन) नाम का बूढ़ा व्यक्ति है, जो अपनी लाइफ को खुलकर और खुशी-खुशी जीता है। वे 118 साल तक जीने का रिकॉर्ड बनाना चाहता है। वखारिया अपनी लाइफ से निगेटिव चीजों को दूर रखता है और मस्ती में जीता है। वो अपने 75 साल के बेटे बाबूलाल (ऋषि कपूर) के साथ रहता है, जो अपने पिता की इमेज से बिल्कुल अलग है। बाबूलाल की जिंदगी में कोई खुशी नहीं है। इसी बीच दत्तात्रेय वखारिया ये निश्चित करता है कि यदि उनका बेटा अपनी लाइफस्टाइल नहीं बदलेगा तो वो उसे वृद्धाश्रम भेज देगा। कहानी इन्हीं दो बाप-बेटे के इर्द-गिर्द घूमती है। इन दोनों के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश करता है धीरू (जिमित त्रिवेदी)।

 

फिल्म में अमिताभ बच्चन ने अपने किरदार को बेहतरीन तरीके से प्ले किया है। वहीं, ऋषि कपूर ने भी अपनी अदाकारी से सभी का दिल जीता है। बिग बी-ऋषि कपूर ने बाप-बेटे का किरदार अच्छी तरह निभाया है। ऋषि, बेटे के रोल में ज्यादा जमे हैं। धीरू के रोल में जिमित त्रिवेदी भी जमे है। उन्होंने दो बूढ़े बाप-बेटे के बीच खुद को मैनेज करने की कोशिश की। फिल्म का क्लाइमेक्स फिल्म के नेचर से मैच नहीं करता है।

 

डायरेक्शन

 

ये फिल्म एक नॉवेल पर बेस्ड है, जो बताती है कि एज सिर्फ एक नंबर है। शुक्ला ने बड़ी ही होशियारी से इस सब्जेक्ट को फिल्म के माध्यम से दिखाया है, जिसमें दो ओल्ड मैन लीड रोल में हैं। फिल्म में उन्होंने कुछ भी आर्टिफिशियल दिखाने की कोशिश नहीं की। सौम्या जोशी की कहानी सेंसेटिव और दिल को छुने वाली है। इसमें उन्होंने बूढ़ापे के डर को कैसे भगाया जाता है, बताने की कोशिश की है। फिल्म का नाम भी उनके नॉवेल के नाम पर ही रखा गया है। जोशी की कहानी मुख्य रूप से इस बारे में बात करती है कि कैसे लाइफ, बुढ़ापे और मौत के प्रति इंसान का दृष्टिकोण होता है। शुक्ला ने फिल्म के लिए मुंबई सिटी में एक आकर्षक घर का सेट तैयार किया था। स्टोरी लाइन के हिसाब से फिल्म की लंबाई 101 मिनट। फिल्म शुरू होने के कुछ समय बाद पता चल जाता है कि लीड कैरेक्टर का रोल क्या है। फिल्म में डायलॉग्स फनी है।

 


म्यूजिक

 

फिल्म का म्यूजिक स्लो और मेलोडियस है, लेकिन फिल्म के फ्लो से मैच नहीं करता है। सोनू निगम का गाना 'कुल्फी..' अच्छा बन पड़ा है। फिल्म में कुछ ट्रैक जैसे 'वक्त ने किया क्या..' और 'जिंदगी मेरे घर आना..' भी देखने और सुनने को मिलते हैं। फिल्म को आप इसलिए देख सकते हैं क्योंकि ये सोशल मैसेज के साथ इमोशनल भी करती है। लेकिन फिल्म देखते समय ज्यादा एंटरटेनमेंट की उम्मीद नहीं की जा सकती।

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