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इन 21 सिखों का यूरोप में आज भी बजता है डंका, ये है अक्षय की फिल्म 'केसरी' की असल कहानी

Updated 17 March, 2019 03:59:21 PM

बाॅलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म ''केसरी'' 21 मार्च को रिलीज होने जा रही है।  फिल्म एक ऐसे युद्ध की कहानी है जिसके बाद भारतीयों की शौर्यगाथा को पूरी दुनिया ने गाया था। अक्षय ने हाल ही में फिल्म के प्रमोशन के दौरान चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें दुख है सारागढ़ी के इस महान इतिहास से ज्यादात

मुंबई: बाॅलीवुड एक्टर अक्षय कुमार की फिल्म 'केसरी' 21 मार्च को रिलीज होने जा रही है।  फिल्म एक ऐसे युद्ध की कहानी है जिसके बाद भारतीयों की शौर्यगाथा को पूरी दुनिया ने गाया था। अक्षय ने हाल ही में फिल्म के प्रमोशन के दौरान चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें दुख है सारागढ़ी के इस महान इतिहास से ज्यादातर लोग वाकिफ नहीं है। आज हम आपको इस पैकेज में इस महान लड़ाई के बारे में बताने जा रहे हैं। आखिर क्या थी ये सारागढ़ी की जंग और कैसे इस युद्ध ने भारतीय वीर योद्धाओं के लिए ब्रिटेन समेत पूरी दुनिया को नतमस्तक कर दिया था।

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सारागढ़ी लड़ाई से जुड़े कुछ रोचक बातें

इस लड़ाई को  यूनेस्को ने दुनिया की 5 सबसे महान लड़ाइयों में शामिल किया है। ब्रिटिश इंडिया के समय में हुई इस लड़ाई में देश के लिए 21 सिखों ने अपनी जान पर खेलकर दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। केवल 21 सिखों ने  10 हजार अफगानियों को युद्ध के मैदान में धूल चला दी थी। 

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अंग्रेजी सरकार के दौर में हुआ था युद्ध

यह युद्ध तब हुआ था जब भारत पर ब्रिटिशर्स का राज था। दरअसल, अफगानिस्तान की सीमा से लगने वाले इस इलाके में अंग्रेजों ने एक चौकी लगाई थी। इसकी वजह इसकी लोकेशन थी जोकि रणनीतिक रुप से काफी अहम थी।

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सारागढ़ी किले पर कब्जा करने के लिए हुई थी लड़ाई

बता दें कि सारागढ़ी किले पर कब्जा करने के लिए अफगानों और अंग्रेजों के बीच अक्सर लड़ाई होती रहती थी लेकिन इस जगह के लिए अफगानों के विद्रोह की भनक अंग्रेजी सरकार को नहीं लगी थी।  

 

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महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था किला

सारागढ़ किले को महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था। 12 सितंबर को अफगानियों ने भारी संख्या में इस किले पर हमला बोल दिया था।

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12 सितंबर 1897 को हुई थी जंग

इस हिस्से पर कब्जे के लिए साल 1897 में आफरीदियों और अफगानियों ने एक गठजोड़ किया और 26 अगस्त से लेकर 11 सितंबर 1897 तक दोनों सेनाओं ने इस किले ले पर कब्जे की कोशिश की थी। लेकिन वहां मौजूद 21 बहादुर सिखों ने उनकी ये कोशिश नाकाम कर दी। इसके बाद 12 सितंबर को आखिरकार 10,000 अफगानियों ने किले पर हमला कर दिया। किले पर सेना की 36वीं रेजिमेंट के 21 सिख तैनात थे लेकिन उन्हें एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी थी।

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जंग की शुरुआत 


इस हमले की शुरुआत  होते ही सिग्नल गुरुमुख सिंह ने लेफ्टिनेंट कर्नल जॉन हॉप्टन को किले के आप पास की स्थिति के बारे में बताया दिया था। उन्होंने सिखों को जल्द किला छोड़कर भागने के लिए कहा लेकिन सिखों ने पीठ दिखाकर भागने के बजाए इन अफगानियों का सामना करने का फैसला किया था। कहा जाता है कि अफगानियों ने किले को चारों करफ से घेर लिया था ताकि सिख किले से बाहर निकल ना सके। 

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21 सिखों की बहादुरी की कहानी

कहा जाता है कि अफगानियों ने सिखों को आत्मसमर्पण करने का भी मौका दिया था। लेकिन सिखों ने इनके आगे अपना सिर नहीं झुकाया। ईश्वर सिंह के नेतृत्व में लड़ रहे इन सैनिकों को पता चल गया था कि वो 10000 अफगानियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे और बचना नामुमकिन हैं लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इनसे लड़ाई की और उन्हें धूल चटाई। 

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पठानों ने किया नरसंहार

इस हजारों अफगानियों की गोली का पहला शिकार भगवान सिंह बने थे, जो किले के दरवाजे पर दुश्मनों को रोक रहे थे। सिखों के हौंसले को देख  पठानों के कैंप में हड़कंप मच गया था और उन्हें लगा कि किले के अंदर भारी सेना मौजूद है। इसके बाद पठानों ने किले की दो दीवारों तोड़ने की कोशिश की हालांकि वे इस काम में भी असफल रहे। दूसरी तरफ ईश्वर सिंह ने अपनी टोली के साथ पठानों पर हमला कर दिा था। उन्होंने हिना  हथियारों के ही 20 अफगान मार गिराया। गुरमुख सिंह ने अंग्रेज अधिकारियों से कहा कि हम आखिरी सांस तक लड़ेंगे। गोली बारुद खत्म होने के बावजूद उन्होंने खरेंजों से मुकाबला किया।

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पठानों ने किले में लगा दी थी आग


सुबह से शाम और धूीरे-धीरे  सिख सैनिकों की संख्या भी कम होती गई। सारागढ़ी के आखिरी सिपाही गुरमुख सिंह ने अफगानियों की नाक में दम कर दिया और कई अफगानी मार गिराए। जब पठान गुरमुख पर काबू न पा सके तो उन्होंने किले में आग लगा दी और गुरमुख सिंह जिंदा ही आग में जलकर शहीद हो गए। कहा जाता है कि इस किले में 21 सैनिकों के अलावा एक रसोइया भी था और उसने भी जंग में सिखों के कंधे से कंधा मिलाकर कई अफगानियों को मौत के घाट उतार दिया था।

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जंग जीतकर भी हारे पठान

सारागढ़ी की लड़ाई में लड़ते-लड़ते पठान बुरी तरह हार रहे थे।  वे जंग जीत कर भी हारने लगे और रणनीति से भटक गए। दूसरे दिन अंग्रेजों ने आर्मी के साथ सारागढ़ी में मौजूद अफगानियों पर धावा बोल दिया और कड़ी लड़ाई के बाद सारागढ़ी का किला वापिस ले लिया। इस जंग के बाद इन सिखों की बहादुरी पूरी दुनिया के सामने आ सकी थी। अंग्रेजों को 10,000 से ज्यादा अफगानियों की लाश इस दौरान मिली। 

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ब्रिटेन की संसद में हुआ इन 21 सिखों का गुणगान


सारागढ़ी किले में शहिद हुए इन 21  सिखों की याद में ब्रिटेन की संसद में खड़े होकर श्रद्धांजलि दी गई थी। इतना ही नहीं,इनके शहीद होने के बाद इन शहीदों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मैरिट दिया गया था। जो आज परमवीर चक्र के समान है। लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने अमृतसर, फिरोजपुर और वजीरिस्तान में तीन गुरुद्वारे बनवाए थे।

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यूरोप में भी पढ़ाया जाता है सारागढ़ी का पाठ

ब्रिटेन में आज भी सारागढी की लड़ाई को गर्व से याद किया जाता है। यूरोप तक में सारागढ़ी की लड़ाई के बारे में बच्चों को पढ़ाया तक जाता है।

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पाकिस्तान का हिस्सा है सारागढ़ी

हिदंकुश पर्वत माला पर स्थित एक छोटा सा गांव सारागढ़ी है। ये आज पाकिस्तान का हिस्सा है। पाकिस्तान में आज भी सारागढ़ी नाम का एक छोटा सा किला मौजूद है। अब ये पाकिस्तानी सेना के हाथ में है लेकिन भारत आज भी हर साल 12 सितंबर को सारागढ़ी दिवस के रुप में मनाता है।

: Smita Sharma

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