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Film review: फरहान की दमदार एक्टिंग, पर इंटरवल के बाद कमजोर है लखनऊ सेंट्रल

Updated 15 September, 2017 02:19:54 AM

सच्ची घटनाओं पर आधारित लखनऊ सेंट्रल एक फील-गुड, ह्यूमन, जेल तोड़कर भागने की इच्छा...

मुंबईः सच्ची घटनाओं पर आधारित लखनऊ सेंट्रल एक फील-गुड, ह्यूमन, जेल तोड़कर भागने की इच्छा वाले ड्रामा वाली फिल्म है। किशन गिरहोत्रा यानि कि फरहान के सिंगर बनने के सपने तब एकाएक बिखर जाते हैं जब वह मुरादाबाद के आईएएस ऑफिसर के मर्डर के झूठे केस में फंस जाता है। इसके बाद वह उस अपराध के लिए जेल चला जाता है जो उसने कभी किया ही नहीं था। किशन एनजीओ वर्कर (डायना पेंटी) और जेल के कुछ साथियों की मदद से एक बैंड बनाने का निर्णय लेता है। 

 

यह फिल्म आपको इमोशनली जोड़ती है। हर मुश्किल से जीतने की थीम इस फिल्म को लोगों से कनेक्ट करती है। अपने घर से बाहर लखनऊ सेंट्रल की चारदीवारी के अंदर जीने की एक वजह तलाशते कैदी दर्शकों के दिल के तार को छेड़ देते हैं। अपने परिवार और समाज से ठुकरा दिए जाने के बाद कैदी एक-दूसरे के साथ में सुकून महसूस करते हैं। रंजीत तिवारी ने कैदियों के बीच इस दोस्ती और अनोखे रिश्ते को बहुत खूबसूरती के साथ हैंडल किया है।

 

बता दें इस फिल्म में फरहान अख्तर ने उत्तर प्रदेश के एक लड़के का किरदार निभाया है जो कि सहज है साथ ही एनजीओ वर्कर के रूप में डायना पेंटी ने भी अच्छा काम किया है। दीपक डोबरियाल बंगाली किरदार में फिट बैठते हैं तो इनामुल हक ने अपना किरदार अच्छा निभाया है वही राजेश शर्मा और गिप्पी ग्रेवाल का काम भी सहज है। मनोज तिवारी का छोटा लेकिन अच्छा रोल है वहीं रवि किशन की जब-जब एंट्री पर्दे पर होती है तो आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर आती है।

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