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Movie Review: हल्की-फुल्की कॉमेडी का तड़का है खानदानी शफाखाना

Updated 02 August, 2019 01:14:59 PM

सोनाक्षी सिन्हा, वरुण शर्मा और अपने करियर की पहली फिल्म कर रहे रैपर बादशाह की फिल्म ''खानदानी शफाखाना'' आज रिलीज हुई है

तड़का टीम। सोनाक्षी सिन्हा, वरुण शर्मा और अपने करियर की पहली फिल्म कर रहे रैपर बादशाह की फिल्म 'खानदानी शफाखाना' आज रिलीज हुई है। इस फिल्म की मुख्यधारा में ऐसा विषय है जिस पर लोग बात करने से कतराते हैं।  सेक्स जैसे बोल्ड कंटेंट को कॉमेडी के रुप में परोसना अपने आप में बहुत हिम्मत का काम है। फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा एक ऐसी लड़की की भूमिका में हैं जो खानदानी सेक्स क्लिनिक चलाती है। सोनाक्षी की पिछली ज्यादातर फिल्में फ्लॉप रही हैं। 

Bollywood Tadka

किसी छोटे शहर की लड़की अगर सेक्स, शीघ्रपतन, स्तंभन, स्खलन, गुप्त रोग जैसे विषयों पर खुलकर बात करे, तो समाज उसके बारे में क्या क्या सोचता है। ये इस फिल्म से पता चलता है।  फिल्म की कहानी मां (नादिरा जहीर बब्बर) और निकम्मे भाई भूषित बेदी (वरुण शर्मा) की जिम्मेदारियों से जूझ रही बॉबी बेदी (सोनाक्षी सिन्हा) की है। बॉबी का चाचा उसका घर हड़पना चाहता है क्यूंकि बॉबी की बहन की शादी के लिए उसके परिवार ने चाचा से मोटी रकम उधार ली थी। उधर बॉबी के मामा  (कुलभूषण खरबंदा) का निधन हो जाता है और वो अपने पुश्तैनी सेक्स क्लीनिक खानदानी शफाखाना और लाखों की संपत्ति को बॉबी के नाम कर जाते हैं, मगर इस शर्त के साथ कि बॉबी मामाजी के पुराने मरीजों का इलाज करे और 6 महीने तक सेक्स क्लिनिक को सफलतापूर्वक चलाए। बॉबी कर्ज़ा उतारने के लिए इस चुनौती को स्वीकार कर लेती है, मगर उसके बाद उसे घर और समाज से विरोध और घृणा का सामना करना पड़ता है। जाहिर सी बात है, लड़की हकीम से कोई भी सेक्स से जुड़ी समस्या पर बात नहीं करना चाहता इसलिए इस क्लीनिक को चलाने में प्रियांश जोरा उसकी मदद करता है। 

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कुलमिलाकर इस विषय पर थोड़ी और गंभीरता की जरूरत थी। फिल्म का विषय भी अच्छा था और ऐसे विषय पर हम पहले भी 'विक्की डोनर' और 'शुभ मंगल सावधान' जैसी फ़िल्में देख चुके हैं। इसलिए लगता है कि फिल्म को और अच्छा बनाया जा सकता था। पूरी फिल्म सुस्त चलती है, बीच में एकाध सीन इसमें जान भी डालते हैं। फिल्म में एक चीज़ बहुत अच्छी रही है कि कॉमेडी के रूप में वल्गरटी नहीं दिखाई है। डबल मीनिंग डायलॉग से बचा गया है। बादशाह, तनिष्क बागची, विपुल मेहता, पायल देव जैसे संगीतकारों के बाद भी फिल्म के गाने ठीक-ठाक ही बन पाए हैं। 

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इस संवेदनशील विषय पर जिस तरह की फिल्म की अपेक्षा शिल्पी दासगुप्ता से की जा रही थी, उस पर वह खरी नहीं उतरी हैं। इस फिल्म से शिल्पी दासगुप्ता ने भी निर्देशक के रूप में अपना डेब्यू किया है। सोनाक्षी सिन्हा और अच्छा कर सकती थीं। बादशाह ने अपनी पहली फिल्म के हिसाब से ठीक काम किया है। कुलभूषण खरबंदा, अनु कपूर और वरुण शर्मा की एक्टिंग से फिल्म बोझिल होने से बच गई है। फिल्म का विषय संवेदनशील और अन्य फिल्मों से अलग है, इस वजह से फिल्म देख सकते हैं।

: Smita Sharma

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