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MOVIE REVIEW: 'मुक्काबाज'

Updated 11 January, 2018 11:38:05 AM

डायरेक्टर अनुराग कश्यप की फिल्म ''मुक्काबाज'' कल यानि 12 जनवरी को रिलीज होने वाली है। इस फिल्म का मूवी रिव्यू आ गया है। भारत में ऐसी कई खेल प्रतिभाएं हैं जिन्हें अगर सही मार्गदर्शन मिले तो वह सच में देश का नाम रोशन कर सकती हैं लेकिन इनका सबसे बड़ा दुश्मन जातिवाद और भ्रष्टाचार है जो खेल में इनके साथ ‘गेम’ खेलता है। फिल्म ‘मुक्काबाज़’ खेल में इस गंदे गेम को उजागर करती है। फिल्म की पूरी कहानी ‘मुक्काबाज़’ श्रवण पर बेस्ड है जिसे अपने सपने पूरे करने के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

मुंबई: डायरेक्टर अनुराग कश्यप की फिल्म 'मुक्काबाज' कल यानि 12 जनवरी को रिलीज होने वाली है। इस फिल्म का मूवी रिव्यू आ गया है। भारत में ऐसी कई खेल प्रतिभाएं हैं जिन्हें अगर सही मार्गदर्शन मिले तो वह सच में देश का नाम रोशन कर सकती हैं लेकिन इनका सबसे बड़ा दुश्मन जातिवाद और भ्रष्टाचार है जो खेल में इनके साथ ‘गेम’ खेलता है। फिल्म ‘मुक्काबाज़’ खेल में इस गंदे गेम को उजागर करती है। फिल्म की पूरी कहानी ‘मुक्काबाज़’ श्रवण पर बेस्ड है जिसे अपने सपने पूरे करने के लिए तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

कहानी कुथ यूं हैं कि यूपी के बरेली में रहने वाले श्रवण कुमार (विनीत सिंह) का पढ़ाई में भले ही मन ना लगा हो लेकिन वो बॉक्सर बनना चाहते हैं। श्रवण का सपना है कि वो यूपी के माइक टायसन बने। इसके लिए वो स्थानीय नेता भगवान दास मिश्रा (जिमी शेरगिल) के यहां जाते हैं जो कोच भी है, जो बॉक्सरों से गेहूं पिसवाने से लेकर खाना बनवाने तक अपने हर पर्सनल काम कराता है। यहां भगवान दास की भतीजी सुनैना (ज़ोया हुसैन) से श्रवण की आंखें चार हो जाती हैं और वो भगवान दास से खिलाफत कर बैठता है। नेशनल में खेलने के लिए उसे बनारस जाना पड़ता है जहां उसके कोच संजय कुमार (रवि किशन) ट्रेनिंग देते हैं। लेकिन मगरमच्छ पानी से बैर करके कहां जाएगा। इसके बाद उसे अपना सपना पूरा करने के लिए क्या-क्या दिन देखने पड़ते हैं, यही पूरी कहानी है।

इसमें ये भी दिखाया गया है कि स्पोर्ट्स कोटे से जॉब मिलने के बाद भी खिलाड़ियों की राह आसान नहीं होती है। सरकारी दफ्तरों में उन्हें फाइल उठाने से लेकर चपरासी तक के काम करने को मजबूर होना पड़ता है। जहां खेल का मंच हैं वहां नेताओं के घर की शादियों का आयोजन होता है। फिल्म में एक सरप्राइज भी है लोगों के लिए और वो कुछ और नहीं बल्कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं जो एक गाने में कुछ देर के लिए नज़र आए हैं। 

बॉक्सर श्रवण कुमार की भूमिका में विनीत सिंह ने कमाल कर दिया है। पर्दे पर उन्हें देखते समय लगता नहीं कि वो एक्टिंग कर रहे हैं। बॉक्सिंग उनके रग-रग में दिखाई देता है। लैंग्वेज में यूपी का टच लाना भी इतना आसान नहीं है लेकिन वो उसे भी बखूबी कर गए हैं। लीड एक्टर के रूप में ये विनीत की पहली फिल्म है। इस मुद्दे पर फिल्म बनाने का आइडिया भी विनीत का ही था जिन्होंने इस फिल्म की स्क्रिप्ट भी लिखी है।
ज़ोया हुसैन इस फिल्म से डेब्यू कर रही हैं वो इस फिल्म में ऐसी लड़की की भूमिका में हैं जो सुन सकती है लेकिन बोल नहीं सकती। उन्होंने भी इसको बहुत ही मजबूती से निभाया है। यूपी के बैकग्रांउड में फिल्म बन रही हो और उसमें रवि किशन और जिमी शेरगिल हों तो उम्मीदें बंध जाती हैं। लेकिन इस फिल्म में रवि किशन जमें नहीं हैं। पिछली बार रवि किशन लखनऊ सेंट्रल में नज़र आए थे जिसमें कुछ देर में ही रवि ने कमाल कर दिया था। इस फिल्म में उन्होंने बहुत ही निराश किया है। वहीं जिमी शेरगिल बस ठीकठाक लगे हैं। 

ये फिल्म करीब 2 घंटे 20 मिनट की है। फिल्म का फर्स्ट हाफ तो बहुत ही शानदार है जिसमें कहीं भी आप बोर नहीं होंगे । चाहें वो बॉक्सिंग के सीन हों या फिर लव स्टोरी...देखकर मजा आ जाता है। लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म को आधा घंटा तो खींच दिया गया है। 

म्यूजिक इस फिल्म की जान है। 'मुश्किल है अपना मेल प्रिये', 'पैंतरा', 'बहुत हुआ सम्मान' ये कुछ ऐसे गाने हैं जो पहले से ही पॉपुलर हैं लेकिन अगर आपने नहीं सुना है आप इसे गुगगुनाते हुए सिनेमाहॉल से निकलेंगे। 


 

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