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Movie Review: 'इंडियाज मोस्ट वांटेड'

Updated 24 May, 2019 10:37:59 AM

बॉलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर की फिल्म ''इंडियाज मोस्ट वांटेड'' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार गुप्ता है। निर्देशन के नजरिए से देखें तो फिल्म इंडियाज मोस्ट वांटेड देश की एक जरूरी कहानी कहती है। ये उस वक्त की कहानी है जब आतंकियों में मोदी सरकार का खौफ नहीं था। दिल्ली के अफसर लालफीताशाही में उलझे रहते थे और काम कुछ होता नहीं था।

मुंबई: बॉलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर की फिल्म 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' आज सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म के निर्देशक राजकुमार गुप्ता है। निर्देशन के नजरिए से देखें तो फिल्म इंडियाज मोस्ट वांटेड देश की एक जरूरी कहानी कहती है। ये उस वक्त की कहानी है जब आतंकियों में मोदी सरकार का खौफ नहीं था। दिल्ली के अफसर लालफीताशाही में उलझे रहते थे और काम कुछ होता नहीं था।

 

Bollywood Tadka


कहानी 


इंडियाज मोस्ट वांटेड कहानी है एक खुफिया अफसर की, जिसका नेटवर्क कमाल का है। वह एक आतंकवादी को पकड़ने के गोपनीय मिशन पर निकलता है। ये बात और है कि मिशन गोपनीय है, ये बात वह अपने साथियों को इतनी बार समझाता है कि मिशन के गोपनीय होने पर शक होने लगता है। दिल्ली पुलिस इस मिशन की परमीशन देती नहीं है कि लेकिन एक अफसर की काबिलियत समझने वाला एक सीनियर हरी झंडी दे देता है। फिल्म का प्रचार बार बार बिना हथियारों की सर्जिकल स्ट्राइक के तौर पर किया गया है, लेकिन नेपाल जाकर फिल्म  ढीली हो जाती है।

 

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डायरेक्शन

फिल्म इंडियाज मोस्ट वांटेड की सबसे कमजोर कड़ियां हैं, इसकी पटकथा और हीरो के तौर पर अर्जुन कपूर का चुनाव। फिल्म में तमाम बातें इतनी बार दोहराई जाती हैं कि दर्शक अपनी कुर्सी पर ही कसमसाने लगता है। धमाकों की इस कहानी की शुरूआत पुणे बम धमाकों से होती है। राजकुमार गुप्ता ने किस्सा सही उठाया है, पर फिल्म बनाने लायक इसमें तमाम चीजों की कमी है। राजकुमार अब तक पांच फिल्में बना चुके हैं और उनकी पटकथा इतनी महीन रस्सी पर चलती है कि जरा सी गड़बड़ होते ही दर्शक घनचक्कर बन जाते हैं। फिल्म का एक ग्राफ होना चाहिए था, लेकिन यहां मामला इतनी सीधी लकीर पर चलता है कि क्लाइमेक्स भी कब आया और कब फिल्म खत्म हो गई पता ही नहीं चलता। 

 

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एक्टिंग 

एक्टिंग के मामले में पूरी फिल्म अर्जुन कपूर पर टिकी है। वह क्लोज अप में अटकते हैं और लॉन्ग शॉट्स में भटकते हैं। संवाद अदायगी का उनका सेट पैटर्न है और वह ऐसे संवेदनशील किरदारों में तो बिल्कुल नहीं जमते। फोन पर भी जब वह देशभक्ति की बातें करते हैं, तो अजीब से दिखते हैं। हां, राजेश शर्मा एक बार फिर अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे।

 

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बाकी एक्टर्स भी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए। इंडियाज मोस्ट वांटेड में डडले की सिनेमैटोग्राफी असरदार नहीं है और न ही अमित त्रिवेदी कुछ ऐसा रच पाए है जो सिनेमा हॉल से बाहर निकलने के बाद याद रह पाए। तकनीकी तौर पर भी ये फिल्म औसत से कम ही है। 

: Konika

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