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MOVIE REVIEW: 'पीहू'

Updated 16 November, 2018 11:55:14 AM

निर्देशक विनोद कापड़ी की फिल्म ''पीहू'' ने रिलीज से पहले ही काफी सुर्खियां बटोर चुकी है। आज ये फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म की कहानी एक दो साल की बच्ची पर आधारित है।

मुंबई: निर्देशक विनोद कापड़ी की फिल्म 'पीहू' ने रिलीज से पहले ही काफी सुर्खियां बटोर चुकी है। आज ये फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। फिल्म की कहानी एक दो साल की बच्ची पर आधारित है। 


कहानी

पीहू एक थ्रिलर कहानी है। फिल्म की कहानी दिल्ली से सटे एनसीआर के एक घर की है, जहां बेटी का जन्मदिन मनाने के ठीक बाद मां का देहांत हो जाता है। 2 साल की बच्ची पीहू (मायरा) पूरे समय बिस्तर पर मृत अवस्था में लेटी हुई अपनी मां के साथ बार-बार बातचीत करने का प्रयास करती है। पीहू को किसी भी चीज का संज्ञान नहीं होता, उसके पिता शहर से बाहर हैं और घर में कोई भी नहीं है। इसी बीच बहुत सारी घटनाएं घटती हैं। पीहू घर की बालकनी से लेकर नीचे लॉबी तक आती जाती है। उसे किसी भी चीज की सुध नहीं है। किसी से वो बातचीत भी नहीं कर पाती है। क्योंकि ठीक तरह से बोलना भी नहीं सिख पाई है। अंततः क्या होता है, इसका पता लगाने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

 

Bollywood Tadka


डायरेक्शन

फिल्म की कहानी असल घटनाओं पर आधारित है, जिसे दर्शाने का ढंग काफी दिलचस्प है। सबसे बड़ी बात है कि फिल्म देखते वक्त आप पूरे समय पीहू की सहायता करते हुए उसके साथ लगे होते हैं। कई बार इमोशनल पल आते हैं। कहानी आगे बढ़ती जाती है। फिल्म में ऐसे कई सीक्वेंस हैं जब आप दिल थाम के बैठ जाते हैं कि कहीं कोई हादसा ना हो जाए। एक बार पीहू गैस पर रोटी गर्म करने जाती है, तो कई बार लोग दरवाजे पर दस्तक देते हैं पर वो दरवाजा खोल पाने में असमर्थ रहती है। एक ही किरदार को लगभग 91 मिनट तक भुना पाने की कला के लिए विनोद बधाई के पात्र हैं। पीहू का किरदार निभा रही मायरा विश्वकर्मा ने बेहतरीन और उम्दा अभिनय किया है। पीहू पूरी तरह से बांधे रखती है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसकी कल्पना मात्र से आप भयभीत हो जाएंगे। एक बड़ा घर, जिसके भीतर 2 साल की बच्ची, अपनी मृत मां के साथ है। वो अलग-अलग क्रिया-कलापों को अंजाम दे रही है। ऐसी लड़की, जिसे किसी भी चीज का संज्ञान नहीं है। 

 

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कमज़ोर कड़ियां

फिल्म एक थ्रिलर कहानी है, जिसमें बैकग्राउंड स्कोर काफी महत्व रखता है। लेकिन इसका बैकग्राउंड स्कोर कमजोर है। इस वजह से फीलिंग्स का प्रभाव थोड़ा फीका पड़ता है। साथ ही जिन दर्शकों को हंसी मजाक वाला मनोरंजन पसंद है, उनके लिए ये फिल्म नहीं बनी है। फिल्म के कई सीक्वेंस और बेहतर हो सकते थे। साथ ही कुछ नए और दिलचस्प वाले हिस्से जोड़े जाते, तो फिल्म और भी बांध पाने में सफल हो जाती।

: Konika

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