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हिंदी सिनेमा जगत के युगपुरुष थे महबूब खान

Updated 27 May, 2018 07:09:34 PM

हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरूष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों ...

मुंबईः हिन्दी सिनेमा जगत के युगपुरूष महबूब खान को एक ऐसी शख्सियत के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने दर्शकों को लगभग तीन दशक तक क्लासिक फिल्मों का तोहफा दिया। कम लोगों को पता होगा कि भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा के लिये महबूब खान का अभिनेता के रूप में चयन किया गया था लेकिन फिल्म निर्माण के समय आर्देशिर ईरानी ने महसूस किया कि फिल्म की सफलता के लिए नये कलाकार को मौका देने के बजाय किसी स्थापित अभिनेता को यह भूमिका देना सही रहेगा। 

महबूब खान मूल नाम रमजान खान का जन्म 1906 में गुजरात के बिलमिरिया में हुआ था। वह युवावस्था में घर से भागकर मुंबई आ गये और एक स्टूडियो में काम करने लगे। उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत 1927 में प्रदर्शित फिल्म‘अलीबाबा एंड फोर्टी थीफस’से अभिनेता के रूप में की। इस फिल्म में उन्होंने चालीस चोरों में से एक चोर की भूमिका निभायी थी। इसके बाद महबूब खान सागर मूवीटोन से जुड़ गये और कई फिल्मों में सहायक अभिनेता के रूप में काम किया। 
Bollywood Tadka
वर्ष 1935 में उन्हें ‘जजमेंट आफ अल्लाह’ फिल्म के निर्देशन का मौका मिला। अरब और रोम के बीच युद्ध की पृष्ठभूमि पर आधारित यह फिल्म दर्शको को काफी पसंद आई। महबूब खान को 1936 में ‘मनमोहन’ और 1937 में ‘जागीरदार’ फिल्म को निर्देशित करने का मौका मिला लेकिन ये दोनों फिल्में टिकट खिड़की पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकीं। वर्ष 1937 में उनकी‘एक ही रास्ता’ प्रदर्शित हुई। सामाजिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फिल्म दर्शकों को काफी पसंद आई। इस फिल्म की सफलता के बाद वह निर्देशक के रूप में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गये। वर्ष 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण फिल्म इंडस्ट्री को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ा। इस दौरान सागर मूवीटोन की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो गयी और वह बंद हो गयी। इसके बाद महबूब खान अपने सहयोगियों के साथ नेशनल स्टूडियो चले गये। जहां उन्होंने औरत (1940), बहन (1941) और रोटी (1942) जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। 

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