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हर actor एक बार बादल सरकार के नाटक में अभिनय करने की इच्छा रखता है": विक्रम कोचर

Updated 06 November, 2023 02:43:51 PM

विक्रम कहते हैं कि ज़ी थिएटर के टेलीप्ले 'पगला घोड़ा' में अभिनय करने का मौका उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा था

मुंबई। जब नाटककार और थिएटर निर्देशक बादल सरकार ने 1962 में 'पगला घोड़ा' नामक नाटक लिखा था, तो उन्होंने यह नहीं सोचा होगा कि हर गुज़रते दशक के साथ इसकी गूंज इतनी बढ़ जाएगी। सरकार ने पचास से अधिक नाटक लिखे और नुक्कड़ नाटक को मुख्यधारा में शामिल किया, जिसमें सामाजिक असमानताओं और राजनीतिक मुद्दों को निडरता से संबोधित किया गया। सबसे अधिक अनुवादित बंगाली नाटककारों में से एक के रूप में, उनका नाम अब विजय तेंदुलकर, मोहन राकेश और गिरीश कर्नाड जैसे अग्रणी लेखकों  के साथ लिया जाता है जिनकी  छाप समकालीन भारतीय रंगमंच पर अमिट है। ज़ी थिएटर के हिंदी टेलीप्ले 'पगला घोड़ा' में अभिनय करने वाले अभिनेता विक्रम कोचर का कहना है कि बादल सरकार के इस नाटक में काम करना उनके लिए एक सपने के सच होने जैसा था.  वे आगे कहते हैं, "हर गंभीर अभिनेता कम से कम एक बार बादल सरकार के नाटक में  अभिनय करने की इच्छा रखता है।"

विक्रम नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के स्नातक हैं और  उन्होंने 'चूना' और 'रक्तांचल' जैसे सफल ओटीटी शोज़  के साथ-साथ 'मनमर्ज़ियाँ ', 'केसरी' और 'एंग्री इंडियन गॉडेसेस' जैसी फिल्मों में अभिनय भी किया है.  बाद सरकार की रचनाओं के विस्तार से वे अच्छी तरह वाकिफ हैं और कहते हैं, "जो चीज़ उन्हें सबसे पृथक करती है, वह है थिएटर के प्रति उनका उन्मुक्त  दृष्टिकोण। उनके नाटक परिवर्तन लाना चाहते थे  और लैंगिक,  राजनैतिक  और समाजिक  कुरीतियों को दूर करने की कोशिश करते थे।"

विक्रम कहते हैं, "'पगला घोड़ा' की कहानी तब शुरू होती है जब चार लोग एक अज्ञात महिला के शव को आग के हवाले करने के लिए श्मशान घाट में इकट्ठा होते हैं. और फिर जो घटता है वो  पितृसत्ता और विशप्त मर्दानगी पर एक तीखी टिप्पणी है जो  दर्शकों को सामाजिक  और लैंगिक  असमानताओं  के बारे में सोचने के  लिए मजबूर करेगी। ये नाटक सशक्त रूप से दिखाता है कि पितृसत्ता  केवल महिलाओं के लिए ही नहीं बल्कि  बल्कि पुरुषों के लिए भी घातक है।"

विक्रम इस बात से खुश हैं कि  ज़ी थिएटर के माध्यम से उच्च स्तरीय नाटक अब दर्शकों तक पहुँच पाएंगे।  वे  कहते हैं, "हर कला का विकास होना चाहिए और अच्छे नाटकों  को संग्रहित करने के लिए थिएटर का डिजिटलीकरण करना अब आवश्यक है। मुझे उम्मीद है कि हर कोई इस टेलीप्ले को देखेगा और जानेगा कि भारतीय रंगमंच वास्तव में कितना जीवंत है!"

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